Tuesday, June 7, 2011

कृतज्ञता


कृतज्ञता
 सिर्फ चोटी पर ठहरे
पेड़ के पत्तों के लिए ही नहीं
धरती में प्रविष्ट जड़ के लिए भी

कृतज्ञता पूरे पेड़ के प्रति
और उसे धारण करने वाली
पूरी धरती के प्रति

कृतज्ञता हवा के प्रति
और हवा से प्राणों का अद्भुत सम्बन्ध बना कर
मुझे जीवित रखने वाले के प्रति भी

कृतज्ञता का भाव भी
प्रार्थना की तरह धो  देता है 
मन का कलुष
मिटा देता सब शिकायतें

अभिषेक के बाद
पुरोहित द्वारा
चन्दन कुमकुम लगाने के बाद
जैसे विघ्नविनाशक की हो रही हो आरती
कुछ कुछ ऐसा ही
हो जाता है मन

सुन्दर, सौम्य, शीतल
मेरे लिए मेरा विस्तार खोल कर
अपार प्यार सुलभ करवाने की कृपा करता
मेरा मन
शायद कृतज्ञता के भाव में तन्मय होकर
किसी एक क्षण
जिसकी उपस्थिति को मुखरित करने
स्वयं पूरी तरह अनुपस्थित हो जाता है

उस सर्वाधार के प्रति
कृतज्ञता सहज ही मेरे प्रति खोल देती है
मेरी पूर्णता


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, ७ जून २०११     

     

     

1 comment:

Unknown said...

सुन्दर, सौम्य, शीतल
मेरे लिए मेरा विस्तार खोल कर
अपार प्यार सुलभ करवाने की कृपा करता
मेरा मन

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ , बधाई

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