Monday, June 6, 2011

मंगल मौन में


यह जो
स्वर्ण कलश लेकर
सौभाग्य और समृद्धि उंडेलने वाली
लक्ष्मी जी हैं
इनका निवास स्थल
हमारे भीतर
उजागर करने
मौन की ताल पर
उन्नत ध्वनि की मंगल धारा
बह रही है जो सदियों से
इसके अनुनाद 
सुन नहीं पाते कोलाहल में

लो अनंत की रश्मियों से
शांत कर मन
बैठे अपने भीतर
स्वयं को पुकारें ऐसे
की स्वर लक्ष्मीजी तक भी
पहुँच जाए

स्वर्ण कलश लेकर
अमृतमय सौभाग्य और समृद्धि
उन्ड़ेलती मैय्या की छवि में
आस्था, आश्वस्ति और अक्षय आशा की
जो प्रेरक तान है
मंगल मौन में सुन कर इसे
क्यूं न धन्य हो जाएँ
अभी इस क्षण

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ जून २०११    
       

2 comments:

Vivek Jain said...

बहुत बढ़िया, लाजवाब!

विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Arun sathi said...

bahut hi sundar....

सुंदर मौन की गाथा

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