यह जो
स्वर्ण कलश लेकर
सौभाग्य और समृद्धि उंडेलने वाली
लक्ष्मी जी हैं
इनका निवास स्थल
हमारे भीतर
उजागर करने
मौन की ताल पर
उन्नत ध्वनि की मंगल धारा
बह रही है जो सदियों से
इसके अनुनाद
सुन नहीं पाते कोलाहल में
लो अनंत की रश्मियों से
शांत कर मन
बैठे अपने भीतर
स्वयं को पुकारें ऐसे
की स्वर लक्ष्मीजी तक भी
पहुँच जाए
स्वर्ण कलश लेकर
अमृतमय सौभाग्य और समृद्धि
उन्ड़ेलती मैय्या की छवि में
आस्था, आश्वस्ति और अक्षय आशा की
जो प्रेरक तान है
मंगल मौन में सुन कर इसे
क्यूं न धन्य हो जाएँ
अभी इस क्षण
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ जून २०११
2 comments:
बहुत बढ़िया, लाजवाब!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bahut hi sundar....
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