१
उजाले की चादर
जहां बिछाई
वहा नहीं दे
रही दिखाई
मन में उत्सव है निराला
हर तरफ हो गया उजाला
२
संभल संभल कर
चलते चलते
जब
उसके चलने और उड़ने का अंतर
खो गया,
सबको
संभाल कर रखने की
ताकत वाला
अब संभाल कर रख लेने जैसा
हो गया
३
ये सहेजने की लालसा नहीं
अंगड़ाई है
उसी सर्वोत्तम की
जो मुझे लेकर
शब्द डगर पर चलती है
और नई नई पौशाक
पहन लेने को मचलती है
उसी छूकर पावन हो गए परिधान
सज गयी शब्दों में, अनंत की पह्चान
४
छल छला रहा आनंद रस
शुद्ध प्रेम है उजागर
चल पडा बताने सबको
शिखर की ओर जाकर
अशोक व्यास
रविवार, मई २२, २०११
1 comment:
छल छला रहा आनंद रस
शुद्ध प्रेम है उजागर
चल पडा बताने सबको
शिखर की ओर जाकर
अदभुत,अनुपम अनुभव.
शुद्ध प्रेम हो जब उजागर
उजाले की हो हर तरफ
लहर ही लहर.
आनंद रस बस यूँ ही छलकाते रहिये अशोक भाई.
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