छोड़ कर
वह सब
जो सुना-समझा अब तक
छोड़ कर
छूट जाने की अकुलाहट भी
देखता रहा वह
आकारों का बनना-मिटना
रंगों का उभर कर लुप्त होना
छू-छू कर अद्रश्य करता रहा
हर परिधि
महसूस कर
ध्वनिराहित स्पंदन का विस्तार
गहन शांति में
मुस्कुराया वह
धरती छोर तक
फ़ैल गयी
उसकी निर्मल, निष्कलंक मुस्कान
शब्द सारे हो गए 'मैं'
वह 'मैं'
जो 'मैं' को छोड़ कर
शेष है निरंतर
अशोक व्यास
२३ मई ११
न्यूयार्क, अमेरिका
2 comments:
शब्द सारे हो गए 'मैं'
वह 'मैं' जो 'मैं' को छोड़ कर
शेष है निरंतर
सुन्दर शब्द पहेली.
'मैं' का फंडा समझाएं अशोक भाई.
दर्शनयुत।
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