Friday, April 22, 2011

उजियारी राशि का वह दूसरा हिस्सा


दिन सूर्योदय से नहीं
मन के उदय होने से खुलता है

मन को उदित करने वाली
प्रेरक आभा
उंडेलता है
एक वह
प्रतिदिन
पर उसके लिए
जो इसे देखे, इसे पहचाने

कई बार
कई कई बरस बीता जाते हैं
दिन के दरसन किये बिना

हमारे लिए दिन करने वाले हम ही हैं
सूरज की हमारी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं

दिन सार्थक 
तब बनता है
जब सूरज सृजित दिन के अर्द्ध हिस्से
को पूर्ण कर देता है
हमारे हिस्से का दिन

किरणे अपार धैर्य और
चिर सौन्दर्य को साथ ले
आती हैं हम सबके द्वार
पूछती हैं भोर होने पर
हमारे मन से
'लाओ कहाँ है
उजियारी राशि का 
वह दूसरा हिस्सा
जिसे
तुम्हारे मन से प्रकट होना था?'


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
                   शुक्रवार, २२ अप्रैल २०११                

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सुप्रभात।

Anupama Tripathi said...

मन को उदित करने वाली
प्रेरक आभा
उंडेलता है
एक वह
प्रतिदिन
पर उसके लिए
जो इसे देखे, इसे पहचाने

divyata dete bahut sunder bhav ...
abhar,

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...