दिन सूर्योदय से नहीं
मन के उदय होने से खुलता है
मन को उदित करने वाली
प्रेरक आभा
उंडेलता है
एक वह
प्रतिदिन
पर उसके लिए
जो इसे देखे, इसे पहचाने
कई बार
कई कई बरस बीता जाते हैं
दिन के दरसन किये बिना
हमारे लिए दिन करने वाले हम ही हैं
सूरज की हमारी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं
दिन सार्थक
तब बनता है
जब सूरज सृजित दिन के अर्द्ध हिस्से
को पूर्ण कर देता है
हमारे हिस्से का दिन
किरणे अपार धैर्य और
चिर सौन्दर्य को साथ ले
आती हैं हम सबके द्वार
पूछती हैं भोर होने पर
हमारे मन से
'लाओ कहाँ है
उजियारी राशि का
वह दूसरा हिस्सा
जिसे
तुम्हारे मन से प्रकट होना था?'
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शुक्रवार, २२ अप्रैल २०११
2 comments:
सुप्रभात।
मन को उदित करने वाली
प्रेरक आभा
उंडेलता है
एक वह
प्रतिदिन
पर उसके लिए
जो इसे देखे, इसे पहचाने
divyata dete bahut sunder bhav ...
abhar,
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