ये किसकी व्यवस्था है
की
बाहर रहता है सूरज
और
सारे जगत में
फैलते उजियारे से परे
अपने बंद कमरे के अँधेरे में
रह सकते हैं हम
२
ये किसका निर्णय है
की बंद रहें खिड़कियाँ-दरवाजे
कट कर
बाहर की हवा से
अपने आप में सिमटे
दोहराते रहें हम
वो कुछ बातें
जिनके गंध
बैचैन करती है हमें
३
ये कौन है
जो उठा कर हमारे हाथ
खुलवा देता है
हमारे ही घर की खिड़कियाँ
और
बादलों के नयी कलाकृति
का पारदर्शी संगीत
अनायास
कुछ नया रच देता है
हमारे भीतर
ऐसा
की मिटने लगता है
अस्तित्व दीवारों का
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शुक्रवार, २५ फरवरी २011
3 comments:
आज की जीवन शैली पर लिखी अच्छी रचनाएँ
अपने और प्रकृति के बीच निर्मित कृत्रिम बाधायें।
dhanyawaad Sangeeta ji
aur Praveenji
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