उसके द्वार पर
उजियारे का उत्सव
आनंद का उमडन
बिना जाने ही
रूप बदल जाता मेरा
न जाने कैसे
अतिथि की भूमिका छूट जाती
रंग-बिरंगे उल्लास में भीगा
नृत्य करती धडकनों के साथ
अपार प्यार के ज्वार पर सवार
करने लगता अगवानी
मिलता गले
आगंतुकों के
जैसे सबके साथ
कई कई जन्मों का सम्बन्ध है मेरा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, २२ फरवरी २०११
2 comments:
Bahut dhanyawaad Vandanaji
यही तो अपनापन है... दिल से निकली दिलों को छूती रचना
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