जो भी है
अर्जित, संचित, सुरक्षित
सहेजा हुआ
अब तक
वो सब जो
नापा जा सकता है
किसी देश की मुद्रा में
और वह
जो देखा जा सकता है
किसी की भाव-भंगिमा में
और वह भी
जिसे ना कोइ देख पाए
न पहचान पाए
पर जिससे संतोष झरता जाए
यह सब
आधार व्यवहार के
और स्वयं से प्यार के
टिके हुए हैं
एक सूक्ष्म दृष्टि पर
इसे बचाने की तरफ
जो दे पाता है ध्यान
उसके लिए
सब कुछ हो जाता है आसान
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, २३ फरवरी 2011
2 comments:
एकै साधे सब सधे।
sach kaha praveenji maharaj
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