अब ये भी बोध है
कि सीमित तो है ही
देहयुक्त उपस्थिति का
यह काल,
पर यह सजगता भी कि
इस अवस्था के हर क्षण में
बना रह सकता है
तादात्म्य अनंत से,
और यह अनुभूति भी कि
आनंद उमड़ने के साथ
सहज ही फूटता है प्रेम
सहज ही होती है
मंगल कामना सबके लिए,
किसी भी परिधि में सीमित
नहीं है
यह एक
मेरे होने का सत्य
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ जनवरी 2011
7 comments:
और यह अनुभूति भी कि
आनंद उमड़ने के साथ
सहज ही फूटता है प्रेम
सहज ही होती है
मंगल कामना सबके लिए
बहुत खूबसूरत रचना ...आनंद प्रदान करने वाली
आज मेरी पोस्ट का विषय भी देह की नश्वरता है।
अति गूढ़ बात ली हुई रचना।……शाश्वत सत्य को दर्शाती हुई।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01- 02- 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
गहन चिंतन से परिपूर्ण बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
गूढ़ और सत्याभिव्यक्ति..... आभार...
बहुत खूब ...मर्मस्पर्शी भाव....
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