Thursday, January 20, 2011

तुम्हारे भेजे शब्द उपहार



जैसे आसमान से 
उतरा हो
फूलों का महकता गुलदस्ता,
जैसे आत्म-सखा रूप में 
साथ मिल कर
खिलखिलाया हो रस्ता,
ऐसे ही 
जब जब देखता हूँ 
तुम्हारे भेजे शब्द उपहार 
मेरे समूचे
अस्त्तित्व से फूटता है
रसमय, निश्छल प्यार 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, २० जनवरी २०११





3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

शब्द वाहक हैं उस संदेश के।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर भाव

हरकीरत ' हीर' said...

जैसे आसमान से
उतरा हो
फूलों का महकता गुलदस्ता,
जैसे आत्म-सखा रूप में
साथ मिल कर
खिलखिलाया हो रस्ता,
ऐसे ही
जब जब देखता हूँ
तुम्हारे भेजे शब्द उपहार
मेरे समूचे
अस्त्तित्व से फूटता है
रसमय, निश्छल प्यार


शब्द कुछ देर रोक लेते हैं ......!!

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...