इस बार
गंगा की धारा को
बुला कर
सौंप दिया अपना आप
कह दिया "लो माँ
धुल दो
सारे दुःख-शोक, संताप"
उजला और स्वच्छ बना कर
पतित पावनी गंगा मुस्कुराई
जब भी तुम्हारे मन का होने लगे बुरा हाल
तो मुझे बुलाने में देर ना लगाना मेरे लाल
यूँ तो मैं नित्य तुम्हारे भीतर ही करती हूँ निवास
पर बिन बुलावे कहीं ना जाने का बना है अभ्यास
जो स्वयं का करना चाहते हैं उद्धार
मुझे बुलावा भेजता है उनका प्यार
शिव भी तुममें, भागीरथ भी तुममें
तुममें ही परम कल्याण का सार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, १९ जनवरी 2011
1 comment:
सबही समाया।
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