Tuesday, January 18, 2011

फोन करने से पहले



संवाद इस पर
निर्भर है कि
हम कौन सा गीत गाते हैं
प्रवाह बात का
बनाए रखने
हम कौन सा सुर अपनाते हैं

कभी हम
अपना सारा ध्यान बात पर नहीं
फ़ोन के बढ़ते बिल पर टिकाते हैं
 
और तब जब हम
बैंक की दृष्टि से तो
 सम्पन्न हो जाते हैं
या तकनीकी विकास से 
संपर्क शुल्क घाट जाते हैं 

 चलते चलते हम संशय के गलियारे से
कुछ परछाइयां बटोर लाते हैं
फिर ना उजला उजला कुछ कह पाते हैं
ना प्यार सुनाती नदी की कल कल सुन पाते हैं

ऐसा क्यूं होता है
जब हम एक अभाव से छुटकारा पाते हैं
दूसरे अभावों को  पालने में लग जाते हैं?


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
१८ जनवरी 2011

2 comments:

vandana gupta said...

सही कह रहे हैं अब इंसान स्वार्थी हो गया है।

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सटीक अवलोकन।

सुंदर मौन की गाथा

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