अब जब
साफ़ दिख रहा है
सूरज की किरणों में
तुम्हारा चेहरा
और
ऊष्मा यह प्रेम की
सोंख रहा है
मेरा रोम- रोम
अधमुंदी आँखों से
देख कर
पुष्टि करना चाहता हूँ
यह जो
महसूस कर रहा हूँ
तुम्हारा होना
अपने आस पास
कहीं तुम भी
देख तो रहे होंगे मुझे
और
तुम्हारी दृष्टि से
पोषित है
यह जो उल्लास सा
मन में
इसे लेकर
नृत्य करने की यह स्निग्ध उमंग,
लो
सहसा
निश्चल मौन में
सज गया है
शाश्वत मिलन का
अद्वितीय उत्सव
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ दिसंबर २०१०
1 comment:
असीम आनन्द भी।
Post a Comment