देकर अमृत का पता
मौन हुआ मुसकाय
मेरा होकर मोहना
मुझ में ही छुप जाय
२
आनंद मेरा सारथी
मंगल मधुर विहार
पग पग ऐसी मौज है
खिलता जाए प्यार
३
गीत वही उगता यहाँ
जिसमें प्रेम अपार
सबसे अपनापन सजे
साँसों में वो सार
४
चल चल ले विश्वास तू
फैला दे उजियार
छक कर पी ले रात-दिन
दिव्य प्रेम रसधार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, १४ दिसंबर 2010
1 comment:
उसी छिपे अमृतमयी मोहना को ढूढ़ना है।
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