तूफ़ान
जल्दी गुजर गया
इससे पहले की टूटती टहनियां
शायद जड़ों से निकल ही आता वृक्ष
गुजर गया आपा-धापी का दौर
शांत हो गया
वो एक
झंझावात सा
इस बार
किसी तरह
फिर से लौट आया
सुरक्षित छत के नीचे
तुम्हारा हाथ थाम कर
बिना लहू लुहान हुए
और
कड़कती बिजली की कौंध में
दीख पड़ा
उसका जगमगाता परिचय
जो हर हलचल में मेरा अपना है
और
हर उथल-पुथल में
मेरी पूर्णता को
बचाए रखता है
जिसका सौम्य संकेत
तूफ़ान के पार
लाने वाले के
साथ साथ
कृतज्ञता पूर्ण प्रणाम है
तूफ़ान को भी
जो मुझे हिला हिला कर
'मूल' की
याद दिलाता है
मूल' वह
जिसे कोई हिला नहीं
पाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२९ नवम्बर 2010
1 comment:
उन्ही मूल तत्वों की खोज में जीवन।
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