Monday, November 29, 2010

जो हर हलचल में मेरा अपना है

तूफ़ान
जल्दी गुजर गया
इससे पहले की टूटती टहनियां
शायद जड़ों से निकल ही आता वृक्ष
गुजर गया आपा-धापी का दौर
शांत हो  गया
वो एक
झंझावात सा

इस बार
किसी तरह
फिर से लौट आया
सुरक्षित छत के नीचे
तुम्हारा हाथ थाम कर
बिना लहू लुहान हुए
और
कड़कती बिजली की कौंध में
दीख पड़ा
उसका जगमगाता परिचय
जो हर हलचल में मेरा अपना है
और
हर उथल-पुथल में
मेरी पूर्णता को
बचाए रखता है
जिसका सौम्य संकेत

तूफ़ान के पार
लाने वाले के
साथ साथ
कृतज्ञता पूर्ण प्रणाम है
तूफ़ान को भी
जो मुझे हिला हिला कर
'मूल' की
याद दिलाता है

मूल' वह
जिसे कोई हिला नहीं
पाता है


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२९ नवम्बर 2010

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

उन्ही मूल तत्वों की खोज में जीवन।

सुंदर मौन की गाथा

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