प्रार्थना
रूप रंग बदलती है
समय के साथ
चाहतों की तस्वीर
बदल देते
नए नए हालात
तो वह सब
जो मैंने कभी माँगा था
जो तुम दे भी चुके हो मुझे शायद
अब प्रासंगिक नहीं लगता
और
आज सुबह सोचता हूँ
क्या मांगूं तुमसे
जो हमेशा बना रहे प्रासंगिक
२
मैं कैसे उपयोगी बनाऊँ अपना जीवन
सोच सोच कर
हर बार
नहीं देख पाता
किसी योजना का आकार
बस इतना चाहता हूँ
जाग्रत हो मुझमें
हर हाल में बना रहने वाला
निश्छल प्यार
इसी से
खनक जायेगी
प्रासंगिकता की
नित्य झंकार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ नवम्बर 2010
1 comment:
प्यार निश्छल ही हो।
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