मौन मेरा इतना सुन्दर करने वाला
खोल रहा हर एक पहेली का ताला
निश्छल प्रेम झरे है मेरे अंतस में
लिए चलूँ साँसों में पावन मधुशाला
कई बरस तक गंध रही मेरेपन की
अब मुझसे हो मुक्त हुई उसकी माला
चल मन मौज मनाने के दिन आये हैं
आत्मसुधारस पीकर होले मतवाला
सारे बंधन भस्म हो गये क्षण भर में
कृपा किरण ने अद्भुत जादू कर डाला
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
रविवार, २१ नवम्बर २०१०
, अचरज है
1 comment:
मौन कठिन है पर फलदायी है।
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