Saturday, November 20, 2010

देता है दिन रात तराने मस्ती के

 
देता है दिन रात तराने मस्ती के
रंग हुए गुलज़ार हमारी बस्ती के
 
हुए नए किस्से रोशन इतने सारे 
चर्चे हैं हर ओर तुम्हारी हस्ती के

नए-नए गुर सीख-सीख कर जाना है
सच्चे साथी, गीत तुम्हारी मस्ती के
 
बीच नदी के लगे किनारे आ पहुंचे
तुम हो खेवनहार हमारी  कश्ती के
 
अपने से बाहर झांके का वक़्त जिसे
वही सुनाये हाल हमारी बस्ती के

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, २० नवम्बर २०१०





2 comments:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

वाह क्या बात है ... बेहद सुन्दर रचना है !

प्रवीण पाण्डेय said...

बाहर अपने झाँक सका जो, वाक्या बस्ती वही सुनायेगा।

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