Friday, November 19, 2010

पूर्णता की पहचान



लौटने से पहले
अपनी निशानियाँ 
छोड़ने की चाह,
या
जो कुछ है
उसे समेट कर 
चल देने का उत्साह,
 
दोनों ही सूरतों में 
वर्तमान 
प्यासा रह जाता
हमारे ध्यान का,
नहीं देख पाते
हर क्षण में छुपा
एक सूत्र
पूर्णता की पहचान का


अशोक व्यास
शुक्रवार, १९ नवम्बर 2010

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

केवल वर्तमान पुष्ट करने की शक्ति है हमारी।

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