लौटने से पहले
अपनी निशानियाँ
छोड़ने की चाह,
या
जो कुछ है
उसे समेट कर
चल देने का उत्साह,
दोनों ही सूरतों में
वर्तमान
प्यासा रह जाता
हमारे ध्यान का,
नहीं देख पाते
हर क्षण में छुपा
एक सूत्र
पूर्णता की पहचान का
अशोक व्यास
शुक्रवार, १९ नवम्बर 2010
है कुछ बात दिखती नहीं जो पर करती है असर ऐसी की जो दीखता है इसी से होता मुखर है कुछ बात जिसे बनाने बैठता दिन -...
1 comment:
केवल वर्तमान पुष्ट करने की शक्ति है हमारी।
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