क्यूं ऐसा होता है
भीड़ में
खो जाता है
मेरा एक विचार
बढ़ता हूँ
लेकर गति
और दिशा
औरों से उधार
गंतव्य पर
पहुँच कर भी
अधूरापन करता है
सत्कार
तो निष्कर्ष ये है कि
सतर्कता को
और प्रखर बनाना है
इस बार
स्वयं को
औरों से ही नहीं
अपने दिशाभ्रम से भी
बचाना है
भीड़ में
अपनी पहचान भुलाये बिना,
धीरे धीरे
आगे निकल जाना है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
रविवार, १४ नवम्बर 2010
2 comments:
बहोत ही सुंदर प्रस्तुति.......
भीड़ में न खोना बड़ा कठिन है।
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