कभी-कभी
दिन भर में
चाहे वह हो भी जाए
जो सोचा था
खालीपन की एक खिड़की
कहीं खुली रह जाती है
अनाम ठण्ड से
घिर कर मन
चाहता है
किसी सपने की गर्माहट
ऐसे में
करने लगता हूं
वह सभी उपाय
जिनसे तुम तक पहुंचा जा सके
और फिर हार कर
इस एक महीन सी आस पर
टिक जाती हैं धड़कने
शायद तुम आ जाओ
अपने आप
बिना बुलाये
ऐसे जैसे कि कोई
अपने घर में आकर
बत्ती जलाता है
उजियारा छा जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ नवम्बर २०१०
2 comments:
कई यादें उजियारी होती हैं।
अनाम ठण्ड से
घिर कर मन
चाहता है
किसी सपने की गर्माहट
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ...
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