कोरा मन लेकर
कैसे आऊँ अब
तुम्हारे सामने
रंग तुम्हारे प्यार के
खिल गये हैं
इस तरह मुझमें
कि अब ना मैं हूँ
ना मन ही मेरा
जो कुछ है बस
प्यार है तुम्हारा
और अब यूँ भी होना लगा है
अपना चेहरा देखते हुए
बस प्यार का सागर दिखता है
जिसमें
झिलमिलाती है
सारी सृष्टि तुम्हारी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ नवम्बर 2010
4 comments:
बेहद खूबसूरत...
सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...
.....अपनी तो आदत है मुस्कुराने की !
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
और अब यूँ भी होना लगा है
अपना चेहरा देखते हुए
बस प्यार का सागर दिखता है
जिसमें
झिलमिलाती है
सारी सृष्टि तुम्हारी
वाह! यही तो होना चाहिये उसके बाद कोई चाह बचती कहाँ है।
रंग तुम्हारे प्यार के,
फैलें हर विस्तार के।
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