Sunday, October 31, 2010

बात मेरी ना थी, ना है कोई

 
1
कहीं अपना लगता है, कहीं पराया
सयाने लोग इसी को कहते हैं माया

कहते हैं अजन्मा का वास है सबमें
पर जन्म-मृत्यु से कौन बच पाया
 
२ 
 
 गीत साँसों के साथ जो आया
सार जीवन का अपने संग लाया

रस्ता तन्हाईयों का था लेकिन 
वो हर एक मोड़ पर नज़र आया
 
उड़ गए ख्वाब सब हथेली से
मगर धड़कन को तूने अपनाया 
 
दिशा तारे बताएं सदियों से
बढ़ा संकेत से जो बढ़ पाया 
 
बात मेरी ना थी, ना है कोई
जिसकी है, उसका नाम ही गाया
 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३१ अक्टूबर २०१०




 वो हर बार नज़र आया






5 comments:

vandana gupta said...

बेहद सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति।

POOJA... said...

गहरी सोच के साथ बहुत ही सुन्दर कविता...

महेन्‍द्र वर्मा said...

बात मेरी ना थी,ना है कोई
जिसकी है, उसका नाम ही गाया।

बहुत सुंदर रचना।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बेहद सुन्दर...

प्रवीण पाण्डेय said...

सच में, वो हर बार नज़र आया।

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