धक्का दे देकर
उसे रस्ते से हट जाने के लिए
उकसाता रहा कोई
उसकी जमा पूंजी को
नकली नकदी कह कर उसे
दरिद्र बताता रहा कोई
और
वो भी सोचने लगा था
क्या
पंक्ति से हट जाए
शिखर तक
पहुँचने की
चाहत से पलट जाए
पर तभी
शिखर की मुस्कान से
छू गया अपना आप
फूट गया
रोम रोम से
गति का सहज आलाप
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ अक्टूबर २०१०
1 comment:
शिखर की मुस्कान नशीली होती है।
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