उस क्षण
सब कुछ नहीं
बस
एक स्वर्णिम आलोक की
मद्धम सी अनुभूति
ठहर कर काँधे पर
क्षण से भी छोटे से हिस्से में
कैसे
अनायास
धर गयी ह्रदय में
इतनी शीतलता और आश्वस्ति
कि
लगता है
पर्याप्त है
यह पूंजी
सारी उम्र के लिए
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, २ सितम्बर २०१०
1 comment:
वाह।
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