नए सिरे से
नींद का सुइया
ढूंढता है ज़मीन
टिक कर चलने के लिए,
लौट कर भारत से
पाँव सपनो के
ज़मीन पर पड़ने से
कतराते हैं,
दूर रह कर
एक सपना है
भारत में होना,
एक यात्रा
साकार कर देती सपना
कुछ ऐसे कि हम
सपने और हकीकत का अंतर
समझ नहीं पाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
अगस्त ५, २०१०
2 comments:
सपने की हकीकत तो पूरा होने के बाद ही समझ आती है।
ashokji achcha laga
Post a Comment