Thursday, August 5, 2010

पाँव सपनो के

 
नए सिरे से
नींद का सुइया
ढूंढता है ज़मीन 
टिक कर चलने के लिए,
लौट कर भारत से
पाँव सपनो के
ज़मीन पर पड़ने से
कतराते हैं,

दूर रह कर
एक सपना है
भारत में होना,
एक यात्रा 
साकार कर देती सपना
कुछ ऐसे कि हम
सपने और हकीकत का अंतर
समझ नहीं पाते हैं

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
अगस्त ५, २०१०

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सपने की हकीकत तो पूरा होने के बाद ही समझ आती है।

lalas said...

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