अपनी बात कहने के
लिए
विरोध बाहर से ही नहीं
भीतर से भी होता है
सबसे बड़ा विरोधी है
आलस्य
जो
अपनी बात को
देखने के लिए आवश्यक
धैर्य और निरंतरता की आपूर्ति
किये बिना
परोस देता है
किसी भी सतही बात को
हमारी बात बना कर
२
अक्सर ये होता है
हम अपने
प्रमाद के जंगल में
ऐसी पगडंडियों पर पहुँच जाते हैं
जो
उसी घेरे में घुमाती रहती हैं हमें
जहाँ से बाहर निकलने के लिए
लगा कर सारी उर्जा
शुरू करते हैं
अपनी यात्रा हम
३
नए दिन के साथ
नयेपन का स्वागत करने के लिए
स्पष्टता चाहिए,
स्पष्टता इतनी सी
की हम
आडम्बर की परतों के पीछे
तक जाएँ
और अपने वास्तविक चेहरे को
देखे बिना
चैन ना पायें
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
५ बज कर ५७ मिनट
शुक्रवार, १४ मई, २०१०
1 comment:
....प्रसंशनीय !!!
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