१
हिमालय की गुफा में
ध्यान करते योगी का असर
क्या दिख सकता है
न्यूयार्क की किसी सड़क पर
२
जब जब उभरता है
करुणा का स्वर
मदद करता है कोई
किसी की दौड़ कर
पहले से
सुन्दर हो जाता है संसार
जब जब झांकता
साँसों से शाश्वत का सार
३
हाँ!
कुछ लोग
नफरत, हिंसा और बैर से
आत्मीयता के पुल मिटाते हैं
धरती की छाती को
लहुलुहान करते जाते हैं
पर हम भी क्या
देखा-देखी में
नफरत की फसल उगायें
या जैसे भी हो
मनुष्य मात्र से
प्यार करने की ताकत बचाएं?
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सिर्फ तात्कालिक को देख कर
करें जीवन निर्धारण
या
सर्वकालिक के चरणों में
करें आत्म-समर्पण
व्यावहारिकता के नाम पर
आदर्शों को कर दें अस्वीकार
या फिर
शाश्वत के आलोक में
सीखें सजाना अपने व्यवहार
हम मूल की महानता देखें
या बन कर
प्रतिक्रिया का प्रवाह,
भूल जाएँ
आत्म-सौंदर्य अथाह?
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर २० मिनट पर
गुरुवार, १३ मई २०१०
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