शिकायतों की श्रंखला
धीरे धीरे मिटाता हूँ
उपहार सुविधा वाले
जब तब
दे देकर स्वयं को
तात्कालिकता से परे
शाश्वत की सुध लेने का
हौसला बढ़ाता हूँ
२
थप थप बूंदों की
सुनता हूँ
चुप चाप रात में
अकेला
आलोक वृत्त के फैलाव का केंद्र
मैं
साँसों ही साँसों में
तुझसे बतियाता हूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ फरवरी २०१६
1 comment:
अहा, बढ़ना कुछ अपनी ही ओर।
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