Sunday, January 25, 2015

जो नित्य है

१ 
अभय कहाँ हो तुम अब 
इस क्षण 
जब 
एक अनाम अनिश्चितता 
मुझे घेर कर 
सुना रही 
राग असमंजस 
२ 
इस क्षण 
जब मांग रहा 
साफ़ आसमान 

प्रकट हुए 
सूर्यदेव अंतस में 
उजियारी किरण अनंत की 
छिटकी 

३ 
छंटा संशय 
विश्वस्त मन में 
दीख पड़ा 
तुम्हारी उपस्थिति का संकेत 

तुम यहीं थे शायद 
देख नहीं पा रहा था 
पर तुमको मैं 
कुछ देर 
जो 
गम अपने कुहांसे में 

क्यों होता है ऐसा 
नहीं देखता वह 
जो है 
वह 
जो नित्य है 

अशोक व्यास 

1 comment:

Unknown said...

bahut hi sundar
jai shankar

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