लौटा दूँ कैसे
तुम्हें
वह करूणा
वह निश्छल प्रेम
वह शुभ भाव वर्षण
आभार पुष्प
हाथ में लिए
सौंपता हूँ
सूर्य किरण को
आश्वस्ति है
रूप समेत कर भी अपना
हो जहाँ भी
अलोक है सहचर
सन्देश मेरा
प्रेम भाव, आभार सरस
पहुँच ही जाएगा
तुम तक
जहां भी हो तुम
ॐ
२८ मई २०१४
(दिवंगत प्रेम मूर्ति शांति प्रसाद मूथा जी(जोधपुर) को समर्पित )
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