कहने को बात तो ज़रा सी है
फिर हवाओं में क्यों उदासी है
आज की बात में मिलावट है
मेरे चेहरे पे कल की झांकी है
बच गए टूटने से चुप रह के
फिर लगे है कोई खता की है
कहने सुनने का है हिसाब अजब
जहाँ जमा है, वहीं बाकी है
सिमट गया है अपने आप में वो
ख्वाहिशें अब भी फड़फड़ाती हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
५ अगस्त २०१३
2 comments:
बहुत खूब!
सुन्दर शब्दों में व्यक्त मन के भाव।
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