१
एक ये पल
जब फूटता है प्रकाश
विस्तार की टोह लेता
भागता हुआ
छू छू कर
सब कुछ स्वच्छ कर देने की आतुरता लिए
यहाँ वहां
कर देता हूँ उजियारा
न जाने कैसे
कर्म और गति के साथ भी
शांति और समन्वय से
मेल बनाए रखती
अद्भुत
सृजनात्मक धारा
२
एक इस पल में
बनने बनाने के सपने भी
पोषित करते हैं
मेरी पूर्णता
हर आगत के स्वागत में
तत्पर हूँ जैसे
प्रसन्नता की किरणों से परिपूर्ण
३
अभी इस पल में
जब
शब्दों के साथ
ले रहा अपना मानस चित्र
तुम भी आस पास हो मेरे
यह कह देना
हँसते हँसते
कितना सहज हो गया है
जैसे
एक इस पल में
पूरी सृष्टि के साथ
अपने सम्बन्ध का उत्सव
मना रहा हूँ मैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ अगस्त २०१३
1 comment:
हर चौखट को छू लेगा,
मन का उजियारा।
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