समय के साथ
अब बंद कर दी है बात
बस चुप्पी में अपनी
चले हैं साथ साथ
चलते चलते
अपने सम्पूर्णता में
अपने आप बन जाती है बात
अब
यह जो गूंजती है
सुन्दरता की मद्धम पद चाप
यह
पग पग पर उभर आता है
अनंत का निशब्द आलाप
बिछा कर अपनी सारी चेतना
घुल मिल जाता अपने सूक्ष्म तंतुओं संग
उसके संग, जिससे दिन और रात
अब
कोलाहल में भी
मिल जाता है अक्षय शांति का स्वाद
वही
साथ है निरंतर, जिसे नित्य करता हूँ याद
अशोक व्यास
११ जुलाई २० १ ३
6 comments:
सच कहा आपने,
क्यों जूझे हम हठी काल से,
मस्त रहो, वह साथ चलेगा।
ध्यान की चरमावस्था !
उस मौन की जो प्राप्ति है वह वार्तालाप से कहीं अधिक सार्थक है!
सुंदर भाव...
यही तोसंसार है...
सुंदर भाव...
अब
कोलाहल में भी
मिल जाता है अक्षय शांति का स्वाद
वही
साथ है निरंतर, जिसे नित्य करता हूँ याद
--nirantar anant saath,yahi sach hai
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