Thursday, July 11, 2013

अनंत का निशब्द आलाप


समय के साथ 
अब बंद कर दी है बात 
बस चुप्पी में अपनी 
चले हैं साथ साथ 

चलते चलते 
अपने सम्पूर्णता में 
अपने आप बन जाती है बात 

अब 
यह जो गूंजती है 
सुन्दरता की मद्धम पद चाप 
यह 
पग पग पर उभर आता है 
अनंत का निशब्द आलाप 

बिछा कर अपनी सारी चेतना 
घुल मिल जाता अपने सूक्ष्म तंतुओं संग 
उसके संग, जिससे दिन और रात 

अब 
कोलाहल में भी 
मिल जाता है अक्षय शांति का स्वाद 
वही 
साथ है निरंतर, जिसे नित्य करता हूँ याद 



अशोक व्यास 
११ जुलाई २० १ ३

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा आपने,
क्यों जूझे हम हठी काल से,
मस्त रहो, वह साथ चलेगा।

वाणी गीत said...

ध्यान की चरमावस्था !

प्रतिभा सक्सेना said...

उस मौन की जो प्राप्ति है वह वार्तालाप से कहीं अधिक सार्थक है!

kuldeep thakur said...

सुंदर भाव...


यही तोसंसार है...




रश्मि शर्मा said...

सुंदर भाव...

कालीपद "प्रसाद" said...

अब
कोलाहल में भी
मिल जाता है अक्षय शांति का स्वाद
वही
साथ है निरंतर, जिसे नित्य करता हूँ याद
--nirantar anant saath,yahi sach hai
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