आधे अधूरे जीवन का दर्शन
एक क्षण
सहसा छूट गया
न जाने कैसे
अब जब
समग्रता से दीखता है
समय का चेहरा
शिथिल हो गयी है
पकड़
स्थितियों के पंजों की
हर बार
घेरे है
मुझे विस्तार
इस-उस के पार
यह अनंत का अनवरत आधार
बोध शाश्वत भोर का
है किसका उपहार ?
मेरी हर सांस में खुल रहा सृष्टि के सौंदर्य का सार
और दृष्टि में परम कृपालु के प्रति परम आभार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० जुलाई २० १ ३
1 comment:
कृपा प्रेमसागर की बरसे।
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