१
कविता है या नहीं
पता नहीं
बस एक हूक सी
दिखला दूं
चित्र उसका
उसके
शब्द तरल पर
झलकता है
प्रतिबिम्ब जिसका
उसे बिन शब्द
छू नहीं सकता
२
शब्द तो स्वयं
अतीन्द्रिय हैं
चेतना की परिधि में
और उससे परे भी
संभव है
आवागमन शब्द का
छुपा कर स्वयं को
शब्दों में
छोड़ कर अपना
सीमित होने का आग्रह
जब
अपनी इच्छा से
घुल जाता हूँ
शून्य में
निर्भय, निराकार, निश्छल,
स्वच्छ, शुद्ध,
एक अनाम, निर्द्वन्द विस्तार
अज्ञात निद्रा से उठने
करवट बदल कर
आँखें खोलते हुए
संवाद सेतु जीवित करने
प्रार्थना के प्राप्य सी
उतरती है कविता
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ जुलाई २ ० १ ३
2 comments:
बहुत सुंदर
क्या कहने
जल समाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372774138029#c7426725659784374865
भावों को उतारती कविता..
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