(चित्र- डॉ विवेक भरद्वाज, जोधपुर ) |
यह एकांत
अपना सा
घेर कर मुझे
चलता है साथ साथ
सुनते हुए
मेरी
हर कही-अनकही बात
इस एकांत में
इतना प्यार
कहाँ से आता है
ये प्यार मुझे
किसका पता
बताता है
इतनी भीड़ में
कौन इस एकांत के
कोमल अस्त्तित्त्व को
बचाता है
इस नितांत अपने से वृत्त में
धीरे धीरे
सारा संसार उतर आता है
कैसा है ये स्थल
जहाँ
न कोइ आता है, न कोइ जाता है
पर
संसार का व्यापार
चलता चला जाता है
इस एकांत में शरण लेकर
इतना निश्चल , इतना शांत
क्या मिल गया है मुझे
शाश्वत का प्रांत
अशोक व्यास
न्यूयार्क अमेरिका
9 जून 2013
2 comments:
yah ekant ,ek sundar or anek dymence ukrti kavita hai badhai
बहुत वरेण्य है यह एकान्त!
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