इस बार
चर्चा थकान की नहीं
उत्साह की ही करने को
तत्पर और कटिबद्ध था वह
अपने आप में मगन
झूमते हुए
अंतिम पग धर
उसने जाना
उसका सारा उत्साह
प्रेम है
श्रद्धा है
जिसका उद्गम
अदि अंत रहित में है
इस तरह
अपने आप में निहित
विस्तार की चेतना लिए
वह खिलखिलाया
और फिर
मुस्कुराते हुए
उसने जाना
उसका सारा जीवन
जो इतने आनंद से परिपूर्ण है
सौगात है
एके अज्ञात की
अशोक व्यास
१ जुलाई २ ३
5 comments:
सब कुछ अन्दर है छिपा हुआ,
उत्खनन नहीं करना आता।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार८ /१ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है।
मुस्कुराते हुए
उसने जाना
उसका सारा जीवन
जो इतने आनंद से परिपूर्ण है
सौगात है
एके अज्ञात की
उस अज्ञात पार ब्रह्मा परमेश्वर की कृपा बनी रहे तभी जीवन मे उजास है ....
सुंदर अभिव्यक्ति ....
आभार।
बहुत सुंदर रचना, क्या बात है
उत्तराखंड त्रासदी : TVस्टेशन ब्लाग पर जरूर पढ़िए " जल समाधि दो ऐसे मुख्यमंत्री को"
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372748900818#c4686152787921745134
अज्ञात की सौगात....बहुत खूब..
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