Thursday, May 30, 2013

यूं तो आसान है जीवन


१ 

यूं तो आसान है जीवन 
बस इतना ही तो है 
एक सांस के बाद दूसरी 
दूसरी के बाद तीसरी 
और 
कोइ पाबंदी नहीं की 
हर बार गिनते रहें की 
कितनी साँसे ले चुके हैं अब तक 

सांस लो 
और भूल जाओ 
की सांस ली थी 

और 
नहीं है यह बाध्यता भी की 
रहे याद 
अब लेनी है सांस 

व्यवस्था है जीवन की 
अपने आप आती है 
जाती है सांस 

२ 

यूं तो आसान है जीवन 
पर वैसे 
सांसों का आना जाना ही नहीं है जीवन 

जीवन वह है 
जो 
इस आने जाने के बीच 
बचाता है 
हमारा होना 
अर्थवान करता है हमें 
इस गति पर संतुलित होते 
अनुभवों का इन्द्रधनुष 
३ 
कभी किसी से जुड़ कर 
कभी कहीं से मुड कर 
अर्थपूर्ण होता है जीवन 
ऐसे 
की 
अदृश्य हो जाती रिक्तता ,
पूर्णता का 
नित्य नूतन आलोक
 छू कर साँसों को 
तन्मय कर देता 
अनंत वैभव में 
और 
तब 
जब न कुछ मुश्किल 
न कुछ आसान 
खोने पाने से परे का यह स्थान 
इसकी पहचान 
न शब्दों में 
न चित्र में 

इसका होना 
बस धडकनों में ही 
प्रमाणित हो पाता है 
पर अपनी धडकनें सुनने जितना मौन 
जब हमें मिल नहीं पाता है 
ये इतना आसान सा जीवन 
कितना मुश्किल हो जाता है 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
३० मई २ ० १ ३

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

आदि और अन्त के बीच का जीवन, बस वही व्यक्त है।

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...