उसने कहा
इसे मेरी प्रार्थना समझो या जरूरत
इसे मेरी याचना समझो
या प्रेम भरा ख़त
बात ये है
जगत निर्माता जी
मेरी समझ की ऊन का गोला
बार बार
खुल जाता जी
मुझे आता नहीं
करना कुछ निर्माण
बतलाओ कैसे
सार्थक हों मेरे प्राण
इस बार
एकाग्रता से
स्वयं को सिद्ध करने का दे ही दें वरदान
वरना
यूं ही
आपके द्वार पर धरना दे बैठ जाऊँगा कृपानिधान
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ मार्च २०१३
3 comments:
सच है, हम तो सहेजने में लगे रहते हैं इस कपास को, आप हैं कि वस्त्र बना देते हैं।
"मेरी उन का गोला बार बार खुल जाता है --"
बढ़िया है रचना |
आशा
वरना
यूं ही
आपके द्वार पर धरना दे बैठ जाऊँगा कृपानिधान
अब यही करना होगा वो भी कहाँ इतनी आसानी से सुनते हैं
Post a Comment