1
विस्मय सा होता, ना जाने
कौन करे है जग को प्यारा
अंतर्मन से हटा के तमको
दिखलाये कैसे उजियारा
सौंप दिया, चरणों में उसके
अपना 'मैं' सारा का सारा
नित्य सखा शाश्वत है मेरा
शुद्ध प्रेम की अविरल धारा
२
गान फूटता जो यह सुन्दर
करूणा अंकित उसकी इस पर
ज्योतिर्मय का पावन चिंतन
कहे अनकहा अनंत का स्वर
३
दिव्य चेतना का संगीत
पग पग पर है मेरा मीत
कहे उसी की गाथा अनुपम
जड़-चेतन के हर एक रीत
अशोक व्यास
२ मार्च २०१३
न्यूयार्क, अमेरिका
1 comment:
मन का गीत सदा मनभावन..
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