अभी उतर रहा है आसमान से
यह
एक कोमल उजाला
जो,
इसे सहेजने अपने नैनों में
जब देख रहा हूँ ऊपर
छवि तुम्हारी
उंडेल रही है
आश्वासन का यह नूतन आलोक
भीग रहा
मेरा सर्वस्व
इस निर्मल आभा में
जैसे
रोम रोम में
जाग्रत हैं
पंख
अनंत उड़ान के
और
सहज सुलभ है
यह स्पष्टता की
अब
होना है
हर व्यवहार
आदान-प्रदान जीवन का
बस तुम्हारे साथ
हाँ
यही तो माँगा था तुमसे
और
ओ साईं दाता
इतनी शीघ्रता से
दौड़े आये
अपनी अनुकम्पा लुटाने मुझ पर
बैठ कर
इन नन्हे नन्हे शब्दों की पालकी में
इस छोर से
एक होते हैं
मौन और अभिव्यक्ति
क्या इसी तरह
एकमेक हो सकता हूँ
मैं
तुम्हारे साथ बाबा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ मार्च २ ३
1 comment:
शाश्वत आश्वासन..
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