यूं लगता तो है
की
हम सोते हैं
हम जागते हैं
पर कभी कभी
असमय उठ कर
यह प्रश्न उठ जाता है
ये कौन है
जो हमें सुलाता और जगाता है ?
२
प्रश्न कभी कभी
एक किरण बन जाता है
दूर दूर तक आलोक पहुंचाता है
ये उर्वरा धरा का हिस्सा अपने भीतर कैसे बच जाता है
जिस पर किसी निश्छल क्षण में शाश्वत की उपस्थिति का बोध उग आता है
३
कविता की कोख में एक वह जो नित्य नया जन्म पाता है
बिसर जाता है की इस भागते जीव का उससे कुछ नाता है
कविता याद करने की कला का सुन्दर स्वरुप है
इन यादों में, सृष्टा अपने होने की मुहर लगाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ मार्च २० १ ३
3 comments:
कविता याद करने की कला का सुन्दर स्वरुप है
इन यादों में, सृष्टा अपने होने की मुहर लगाता है
बहुत सुंदर भाव ....
आभार ।
अच्छी रचना, बहुत सुंदर
शुभकामनाएं
नोट:
अगर आपको रेल बजट की बारीकियां समझनी है तो देखिए "आधा सच" पर लिंक...
http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/02/blog-post_27.html#comment-form
बजट पर मीडिया का रोल जानने के लिए आप " TV स्टेशन" पर जा सकते हैं।
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/03/blog-post.html?showComment=1362207783000#c4364687746505473216
प्रश्न ही प्रकाश बन जाते हैं।
Post a Comment