Saturday, March 16, 2013

अस्तित्त्व की सामूहिक पहचान


यहाँ अपनी आवाज़ अकेली रह जाने पर 
वह सत्य साथ 
रहता है 
जिससे सब कुछ है 
पर 
जिसको लेकर 
बाज़ार में बैठ कर 
चाय पीना 
शायद संभव न हो 

२ 
आवाज़ मिला कर 
सत्य के स्वर में 
प्रतिष्ठा देते हुए 
तुम चाहे सत्य के साथ एकमेक न हो 
सत्य के पथिकों के लिए 
बना हुआ पथ 
बिखरने से बचता है 

३ 
अब 
बात 'टैक्स' लगने न लगने की नहीं 
बात 
अस्तित्त्व की सामूहिक पहचान की है 
अभी तक तो 
हैं 
कुछ लोग 
जिनकी धमनियों में 
धड़क रही है 
ऋषियों की आप्त वाणी
हमने सुना, सार विश्व एक कुटुंब है 
इसलिए वे हमें एक समुदाय भी नहीं मानते 
एकजुट होकर अपनी अस्तित्त्व की पहचान गुंजायमान करने 
कोइ भी संस्था अपनी मर्जी से 
कर देती है परिभाषा हिन्दू की 
कर लेने की समझ के लिए बने 
भारत में होकर भी 
नहीं जानते 
मर्म हिन्दू होने का 
 
गलती किसकी 
उनकी 
या हमारी 
हम जो जानते हैं 
महिमा हिंदुत्व की 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मन में चाह अटूट रहे बस,
टूटेंगे सब विघ्न पन्थ के।

Anupama Tripathi said...

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